MP की यूनिवर्सिटीज़ में भर्ती-शून्य: 74 प्रतिशत पद खाली – कौन सी कॉलेज में प्रोफेसर तक नहीं?

MP की यूनिवर्सिटीज़ में भर्ती-शून्य: 74 प्रतिशत पद खाली – कौन सी कॉलेज में प्रोफेसर तक नहीं?
MP की यूनिवर्सिटीज़ में भर्ती-शून्य: 74 प्रतिशत पद खाली – कौन सी कॉलेज में प्रोफेसर तक नहीं?

जब हम स्कूल या कॉलेज जाते हैं, तो हम उम्मीद करते हैं कि वहाँ अच्छे टीचर होंगे, जो हमें नई बातें सिखाएँगे। सोचिए, अगर स्कूल या कॉलेज में टीचर ही न हों तो क्या होगा? क्लास खाली रहेगी, बच्चे कुछ नहीं सीख पाएँगे और भविष्य अधूरा रह जाएगा।

मध्यप्रदेश (MP) के कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी में यही स्थिति है। वहाँ पढ़ाने वाले टीचरों की भारी कमी है। रिपोर्ट बताती है कि 74 प्रतिशत पद खाली हैं। यानी जितने प्रोफेसर, लेक्चरर और सहायक अध्यापक होने चाहिए, उनमें से ज़्यादातर नहीं हैं।

इस लेख में हम समझेंगे कि ये समस्या कितनी बड़ी है, किस कॉलेज की क्या स्थिति है और इसका असर छात्रों पर कैसे पड़ रहा है।

इतनी बड़ी कमी कैसे हुई?

कुछ साल पहले तक कॉलेजों में पढ़ाने के लिए अच्छे-अच्छे प्रोफेसर होते थे। लेकिन धीरे-धीरे पुराने प्रोफेसर रिटायर हो गए और उनकी जगह कोई नया नहीं आया।

सरकार की तरफ से नई भर्तियाँ बहुत कम हुईं। और जो भर्तियाँ निकलीं, उनमें भी कई बार प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई।

नतीजा यह हुआ कि कॉलेजों में पढ़ाने के लिए लोग कम और पढ़ने वाले छात्र ज्यादा हो गए। आज कई कॉलेज ऐसे हैं जहाँ एक-दो ही टीचर हैं और सौ से ज्यादा छात्र।

74 प्रतिशत खाली पद का मतलब क्या है?

मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के अनुसार, कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में जो टीचर होने चाहिए, उनमें से केवल 26 प्रतिशत ही मौजूद हैं।

बाकी 74 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। यानी हर चार में से तीन पदों पर कोई शिक्षक नहीं है। यह कोई छोटी बात नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की एक बहुत बड़ी कमजोरी है।

कौन-कौन से कॉलेज सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?

कुछ कॉलेज ऐसे हैं जहाँ एक भी स्थायी प्रोफेसर नहीं है। वहाँ सिर्फ अतिथि शिक्षक (Guest Faculty) पढ़ा रहे हैं। कुछ नाम इस प्रकार हैं:

  • गुना, विदिशा, शिवपुरी जैसे ज़िलों के सरकारी कॉलेज
  • छोटे गाँवों के कई शासकीय महाविद्यालय
  • कुछ यूनिवर्सिटीज़ की भी हालत खराब है, जहाँ विभाग तो हैं लेकिन पढ़ाने वाला कोई नहीं

इन कॉलेजों में छात्र तो हैं, लेकिन कोर्स पूरा नहीं हो पाता, परीक्षाएँ समय पर नहीं होतीं और पढ़ाई का स्तर बहुत नीचे चला गया है।

इसका असर छात्रों पर कैसे पड़ रहा है?

जब पढ़ाने वाले नहीं होते, तो छात्र क्या सीखेंगे? जो टीचर हैं, उन्हें कई-कई क्लासों की जिम्मेदारी दे दी जाती है। इससे वे भी थक जाते हैं और सही तरीके से पढ़ा नहीं पाते।

छात्रों को समय पर सिलेबस पूरा नहीं मिलता। कई बार उन्हें खुद से पढ़ाई करनी पड़ती है, जो हर किसी के लिए आसान नहीं होता।

इसके अलावा, नौकरी की तैयारी करने वाले छात्रों को गाइडेंस नहीं मिल पाता। और जो छात्र आगे रिसर्च करना चाहते हैं, उनके पास मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं होता।

अतिथि शिक्षक भी समाधान नहीं

सरकार ने कई कॉलेजों में गेस्ट फैकल्टी यानी अतिथि शिक्षक भेजे हैं। लेकिन वे भी स्थायी नहीं होते। उनका वेतन कम होता है और काम ज्यादा।

वे कभी भी आ सकते हैं, कभी भी जा सकते हैं। ऐसे में छात्रों को स्थिर और भरोसेमंद शिक्षा नहीं मिल पाती।

सरकार क्या कर रही है?

सरकार ने कुछ समय पहले घोषणा की थी कि वह नई भर्तियाँ करेगी। लेकिन प्रक्रिया धीरे चल रही है। कई बार परीक्षाएँ स्थगित हो जाती हैं या तकनीकी कारणों से चयन रुका रह जाता है।

कुछ कॉलेजों में अस्थायी रूप से नियुक्तियाँ हुई हैं, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान अब तक नहीं हुआ है।

समाधान क्या हो सकता है?

सबसे पहले, सरकार को चाहिए कि वह खाली पदों को जल्द से जल्द भरे। इसके लिए भर्ती प्रक्रिया को तेज करना होगा।

दूसरा, पढ़ाई के स्तर को सुधारने के लिए स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति जरूरी है। केवल गेस्ट फैकल्टी से काम नहीं चलेगा।

तीसरा, छात्रों को डिजिटल संसाधनों से जोड़ना चाहिए, ताकि अगर टीचर न भी हों तो वे ऑनलाइन माध्यम से कुछ सीख सकें।

निष्कर्ष: पढ़ाई तभी सफल जब पढ़ाने वाला हो

MP के कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज़ में टीचर की भारी कमी एक गंभीर समस्या है। यह सिर्फ एक संख्या नहीं है, बल्कि लाखों छात्रों के भविष्य से जुड़ा सवाल है।

अगर हमें देश को आगे बढ़ाना है, तो शिक्षा को मज़बूत करना होगा। और शिक्षा तभी मजबूत होगी जब हर कॉलेज में योग्य, स्थायी और समर्पित शिक्षक होंगे।

आशा है कि सरकार और समाज मिलकर इस दिशा में कदम उठाएँगे और आने वाले समय में हर छात्र को पूरा मार्गदर्शन और शिक्षा मिलेगी।

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