
हम सबने बचपन से यही सुना है कि पढ़ाई करो, अच्छी नौकरी मिलेगी। माँ-बाप बच्चों को पढ़ाने के लिए खूब मेहनत करते हैं। बच्चे भी रात-दिन एक कर देते हैं कि एक दिन डॉक्टर, इंजीनियर या कोई बड़ा अफसर बनेंगे। पर सोचिए, जब कोई लड़का या लड़की सालों तक पढ़ाई करके डॉक्टर या इंजीनियर बन जाए, और फिर भी उसे कोई नौकरी न मिले, तो कैसा लगेगा?
मध्यप्रदेश (MP) में यही हो रहा है। यहाँ लाखों युवक और युवतियाँ हैं, जिनके पास डिग्रियाँ हैं। कुछ ने इंजीनियरिंग की है, कुछ ने डॉक्टर बनने के लिए मेहनत की है। लेकिन अब जब काम करने का समय आया है, तो उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा।
यह लेख उन्हीं युवाओं की कहानी है – उनकी मेहनत, उनकी उम्मीदें और उनकी मुश्किलें।
कितने लोग बेरोज़गार हैं MP में?
मध्यप्रदेश में करीब 25 लाख से ज़्यादा बेरोज़गार युवा हैं। इनमें बड़ी संख्या इंजीनियर और डॉक्टर की है। हर साल हज़ारों छात्र कॉलेज से पास होते हैं, लेकिन काम नहीं मिलता।
सरकारी नौकरियाँ गिनती की हैं और प्राइवेट कंपनियाँ भी बहुत कम लोगों को मौका देती हैं। नतीजा यह है कि पढ़े-लिखे युवा खाली बैठे हैं, कुछ इधर-उधर छोटी-मोटी नौकरी कर रहे हैं, और कुछ तो परेशान होकर घर पर ही रह गए हैं।
पढ़ाई पूरी, लेकिन काम क्यों नहीं?
ये सबसे बड़ा सवाल है। पढ़ाई तो सभी कर रहे हैं, लेकिन काम के मौके बहुत कम हैं। नए कॉलेज तो खुल गए, लेकिन नई नौकरियाँ उतनी नहीं आईं।
इसके अलावा जो पढ़ाई हो रही है, वह कई बार सीधे नौकरी से नहीं जुड़ती। कॉलेज में जो सिखाया जाता है, वह असल जिंदगी में काम नहीं आता। इसलिए कंपनियाँ ऐसे लोगों को काम देना पसंद नहीं करती।
बेरोज़गारी का असर क्या होता है?
जब कोई मेहनत करके पढ़ाई करता है, और फिर भी उसे नौकरी नहीं मिलती, तो वह परेशान हो जाता है। उसका आत्मविश्वास कम हो जाता है। उसे लगता है कि उसकी मेहनत बेकार गई।
कई बार परिवार और समाज से भी दबाव बढ़ता है। लोग सवाल करने लगते हैं – “इतनी पढ़ाई की, फिर भी कुछ नहीं कर रहे?” इससे युवाओं पर मानसिक दबाव आता है।
डॉक्टर और इंजीनियर ही क्यों ज्यादा प्रभावित हैं?
क्योंकि लोगों को लगता है कि डॉक्टर या इंजीनियर बनते ही अच्छा जीवन मिल जाएगा। लेकिन अब इन क्षेत्रों में भी ज़्यादा लोग और कम मौके हैं।
हर साल नए डॉक्टर और इंजीनियर निकल रहे हैं, लेकिन सरकारी अस्पतालों और कंपनियों में उतनी जगह नहीं है। यही वजह है कि ये पढ़े-लिखे लोग भी बेरोज़गारी की लाइन में खड़े हैं।
सरकार क्या कर रही है?
सरकार ने कुछ योजनाएँ बनाई हैं, जैसे कि:
- स्वरोजगार योजना – खुद का काम शुरू करने के लिए मदद
- स्टार्टअप योजना – नया बिज़नेस शुरू करने वालों को सहायता
- ट्रेनिंग प्रोग्राम – नई चीजें सीखने का मौका
लेकिन इन योजनाओं की जानकारी सभी तक नहीं पहुँचती। और कई बार कागज़ी काम इतना ज्यादा होता है कि लोग बीच में ही छोड़ देते हैं।
युवाओं को क्या करना चाहिए?
अगर नौकरी नहीं मिल रही है, तो हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। कुछ नया सीखें। आजकल बहुत से लोग ऑनलाइन काम करके भी पैसे कमा रहे हैं। जैसे:
- ट्यूशन देना
- कंटेंट लिखना
- ग्राफिक डिजाइनिंग
- यूट्यूब चैनल चलाना
इसके अलावा कुछ लोग छोटे स्तर पर खुद का बिज़नेस भी शुरू कर रहे हैं। जैसे – ऑनलाइन कपड़े बेचना, होम डिलीवरी सेवाएँ देना या मोबाइल रिपेयरिंग जैसी सेवाएँ।
समाज और परिवार की भूमिका क्या होनी चाहिए?
समाज को यह समझना चाहिए कि सफलता सिर्फ सरकारी नौकरी में नहीं होती। अगर कोई बच्चा कोई छोटा काम कर रहा है, तो उसका सम्मान करना चाहिए।
परिवार को भी बच्चों का साथ देना चाहिए। उन्हें भरोसा दिलाना चाहिए कि वे जो भी करेंगे, हम उनके साथ हैं।
निष्कर्ष: रास्ते मुश्किल हैं, लेकिन बंद नहीं
बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है, लेकिन इसका हल भी है। हर समस्या का समाधान होता है, बस हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
युवा अगर मेहनत करें, कुछ नया सोचें और सीखने की इच्छा रखें, तो उनके लिए रास्ते जरूर खुलेंगे। सरकार और समाज को भी उनका साथ देना होगा।

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